क्या पाया और कितना पाया
ज़िन्दगी से हमें कोई गिला नहीं
सुना है जितना भी देता है खु़दा
जीने के लिए मुनासिब होता है
मुझे उससे कुछ ज़्यादा तो नहीं चाहिए
बस इतना दे दे कि तुम्हें खु़श रख सकूँ
तुमसे मोहब्बत की’ तुम्हें चाहा
इसमें कुछ ग़लत तो नहीं है…
हर कोई किसी न किसी को चाहता है
और मेरी समझ से किसी को प्यार करना
कभी ग़लत नहीं होता…
मैं हर साँस में अपने लिए तुम्हें
और तुम्हारे लिए खु़दा से खु़शियाँ चाहता हूँ
आमीन!
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४