मैं मंज़िल से दूर सही
ख़ाबों का एक घरौंदा रखता हूँ
बेवजह ही सही लेकिन
किसी से मुहब्बत करता हूँ
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २०००-२००१
मैं मंज़िल से दूर सही
ख़ाबों का एक घरौंदा रखता हूँ
बेवजह ही सही लेकिन
किसी से मुहब्बत करता हूँ
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २०००-२००१