रोशन है इस तरह दिले-वीराँ1 में दाग़ एक
उजड़े नगर में जैसे जले है चराग़ एक*
मसाइले-इश्क़2 से छूटा तो उलझा दुनिया में
ख़ुदा की नवाज़िश है कि बख़्शा दमाग़3 एक
मैं तो मर ही जाता मगर उसने मरने न दिया
मुझमें रह गयी नाहक़ हसरते-फ़राग़4 एक
करम मुझ पर करो शीशाए-दिल5 तोड़कर मेरा
कि यह महज़ है दर्द से भरा अयाग़6 एक
वो किसके दिल में जा बसा है छोड़कर मुझे
नूरे-इलाही!7 उसके बारे में दे मुझे सुराग़ एक
उसके लगाव ने ठानी है ज़िन्दगी जीने की चाह
याख़ुदा8 तू ऐसे हर लगाव को दे लाग9 एक
कोई आता नहीं यूँ तो मेरे घर की तरफ़ फिर भी
जाने किसको सदा दिया करता है ज़ाग़10 एक
ख़ुदा बुलबुल के नाले हैं चमन में गुल के लिए
काश तू देता मुझे आशियाँ11 के लिए बाग़ एक
कम जिये ज़िन्दगी को और ज़िन्दगी थी बहुत
‘नज़र’ बुझती हुई जल रही है आग एक
*मीर का शे’र माना जाता है, नामालूम किसका शे’र है
1. वीरान दिल में; 2. इश्क़ की समस्याएँ; 3. दिमाग़, brain 4. सुख और शान्ति की इच्छा; 5. दिल रूपी शीशा; 6. प्याला; 7. ईश्वर सही रास्ता दिखा!; 8. ऐ ख़ुदा; 9. दुश्मनी; 10. कौआ, Crow; 11. घर, घोंसला, nest
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००५