मेरा सपना कब होगा पूरा
जो है अब तक अधूरा
मेरा सपना कब होगा पूरा
जो है अब तक अधूरा
कब कोई आयेगी दिल मेरा चुरायेगी
जाने कब दिल की सदा यह गायेगी
मेरा सपना हो गया पूरा
जो था अब तक अधूरा
फूलों-सी नाज़ुक वह कमसिन हसीना
जिसके लिए दिल चाहे जीना
फूलों-सी नाज़ुक वह कमसिन हसीना
जिसके लिए दिल चाहे जीना
वह परियों की रानी
जो है मेरी ज़िन्दगानी
कब आयेगी वह दिल चुरायेगी जो
मेरा सपना कब होगा पूरा
जो है अब तक अधूरा
महकी हवाओं में चंचल फ़िज़ाओं में
उसके नामो-निशाँ हैं पर वह नहीं
जिसको ढूँढ़ता हूँ हमेशा यहाँ-वहाँ
चाँद से पूछता हूँ राहों में ढूँढ़ता हूँ
कब मिलेगी वह जिसको ढूँढ़ता हूँ
मेरा सपना कब होगा पूरा
जो है अब तक अधूरा
कब कोई आएगी दिल मेरा चुरायेगी
जाने कब दिल की सदा यह गायेगी
मेरा सपना हो गया पूरा
जो था अब तक अधूरा
मेरा सपना कब होगा पूरा…
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: १९९८-१९९९