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मेरा गीत

मेरी रूह को तख़लीक़ करके

मेरी रूह को तख़लीक़ करके
किस राह में खो गये हो तुम
लफ़्ज़ मेरे अजनबी लगते हैं
जाने किसके हो गये हो तुम

दिन की धूप की पीली चादर
जला करती है सारा-सारा दिन
रात की राख अंगारों के साथ
सुलगा करती है तुम्हारे बिन

उलझे-उलझे ख़्याल आते हैं
उलझे हुए ख़्वाब में डूबा हूँ
ग़म पी रहा है घूट-घूट मुझे
जीते-जी इस क़दर टूटा हूँ

मेरी रूह को तख़लीक़ करके
किस राह में खो गये हो तुम
लफ़्ज़ मेरे अजनबी लगते हैं
जाने किसके हो गये हो तुम

जब भी रात में शग़ाफ़ आता है
खिलती सहर के उफ़क़ दिखते हैं
कितने ही ख़ूबसूरत क्यों न हो
तेरे लबों से कम सुर्ख़ दिखते हैं

ज़हन की गलियों में ही खोया हूँ
तेरे लिए भटकता हूँ दर-ब-दर
तक़दीर के बे-रब्त टुकड़े हैं कुछ
जिनको समेटता हूँ आठों पहर


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४ 

By Vinay Prajapati

Vinay Prajapati 'Nazar' is a Hindi-Urdu poet who belongs to city of tahzeeb Lucknow. By profession he is a fashion technocrat and alumni of India's premier fashion institute 'NIFT'.

6 replies on “मेरी रूह को तख़लीक़ करके”

आपका यह ख़ूबसूरत कलाम बहुत ही पसंद आया। बेहद आला और नफ़ीस ख़यालात
हैं। दाद क़ुबूल कीजिए।

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