न वह कभी आँखों से उतारा ही गया
और न कभी लबों से पिया ही गया
वह इक दर्द का बवण्डर था शायद
न जिसे कभी दिल में सँभाला ही गया
इक कहकशाँ की रोशनी भी खप गयी
न ज़रा पलकों को झपकाया ही गया
आधे-आधे दिल से देखा था मैंने उसे
न वह कभी पूरे दिल से देखा ही गया
तारीक़ी ने सिर्फ़ मेरे पाए ही चुने
और न कभी मुझसे भागा ही गया
टुकड़े कर दिये उसने मेरी आँखों के
न यह ग़म मुझसे भिगोया ही गया
धीरे-धीरे वह मुझसे दूर चलता गया
न मुझसे उसके क़रीब जाया ही गया
बारिश ने खनका दीं शीशम की पत्तियाँ
न रोकर इस दिल को बहलाया ही गया
पाए:feet, तारीक़ी: darkness
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३
6 replies on “न वह कभी आँखों से उतारा ही गया”
बहुत बढिया लिखा है।
धीरे-धीरे वह मुझसे दूर चलता गया
न मुझसे उसके क़रीब जाया ही गया
बारिश ने खनका दीं शीशम की पत्तियाँ
न रोकर इस दिल को बहलाया ही गया
आपकी अमूल्य टिप्पणी के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद!
Nice work !
mera hokar bhi woh kabhi waqaii mera na gaya
gair ke rang mein dhal kar mujhse judaa ho gaya
Salamat mere dil-e-khaari pe marham lagaane waale
Khud woh hi be-niyaazi ke sabaq mein fanah ho gaya
Amazing words of poesy Madhu Jii. Thanks!
Your beautiful sentiments bring out the latent poetics in me…I rarely write, so even *I* am surprised at myself……
I could safely say you motivate me with your words….
Thank *you* ! (smile)
it’s simply your greatness madhu ji.