निकल न चौखट से घर की प्यारे जो पट के ओझल ठिटक रहा है
सिमट के घट से तिरे दरस को नयन में जी आ, अटक रहा है
अगन ने तेरी बिरह की जब से झुलस दिया है मिरा कलेजा
हिया की धड़कन में क्या बताऊँ, ये कोयला-सा चटक रहा है
जिन्हों की छाती से पार बरछी हुई है रन में वो सूरमा हैं
बड़ा वो सावंत1, मन में जिसके बिरह का काँटा खटक रहा है
मुझे पसीना जो तेरे नख पर दिखायी देता है तो सोचता हूँ
ये क्योंके2 सूरज की जोत के आगे हरेक तारा छिटक रहा है
हिलोरे यूँ ले न ओस की बूँद लग के फूलों की पंखड़ी से
तुम्हारे कानों में जिस तरह से हरेक मोती लटक रहा है
कभू लगा है न आते-जाते जो बैठकर टुक उसे निकालूँ
सजन, जो काँटा है तेरी गली का सो पग से मेरे खटक रहा है
कोई जो मुझसे ये पूछ्ता है कि क्यों तू रोता है, कह तो हमसे
हरेक आँसू मिरे नयन का जगह-जगह सर पटक रहा है
जो बाट उसके मिलने की होवे उसका, पता बता दो मुझे सिरीजन3
तुम्हारी बटियों में4 आज बरसों से ये बटोही भटक रहा है
जो मैंने ‘सौदा’ से जाके पूछा, तुझे कुछ अपने है मन की सुध-बुध
ये रोके मुझसे कहा : किसी की लटक में लट की लटक रहा है
शब्दार्थ:
1. सामंत 2. कैसे 3. श्रीजन 4. गलियों में
शायिर: मिर्ज़ा रफ़ी ‘सौदा’
4 replies on “निकल न चौखट से घर की प्यारे जो पट के ओझल ठिटक रहा है”
Vaah bhai vaah..
kya khoob gajal padhvaai..
sauda ji ki kuchh aur gajal yadi aapke paas ho to pesh karen..
Vinay ji,
Bahut khub. ek baat puchni thi “saadi mein udash ke chhabiya mere ghar chari aaoo yahi iltazza hai tumse” ye puri gazal ya sayari jo bhi ho hum kaha pad saktey hi plz batay hum padna chahty hain.
Aap ko ek baar fir gulabi kapolo ke liye dehro badaii.
आपका शुक्रिया प्रशांत, ब्लॉग में सौदा का सुख़न एक कैटेग्री है, उसे पढो उसमें और भी रचनाएँ हैं उस्ताद सौदा की!
@ Mahiraj, बहुत बहुत शुक्रिया! आपको मेल कर दिया है!
saudaji ki gazal padhvane ke liye shukriya.