नूर के जिस्म पर नूर के झुरमुट
यह पायल कंगन बिंदिया बाली रे
देखकर उसको नींद न आयी रतियाँ जागे
जागे रतियाँ चंदा वाली रे…
ख़ुशबू बसती है उसकी आँखों में
यह शब ढलती जाये बातों में
तफ़सील न हो पाये हर्फ़ों में
लबों पे सुर्ख़ियाँ जैसे गुलाबों में
वह कँवल है जैसे तालाबों में
उसे कोई कैसे लिखे सफ़्हों में
नूर के जिस्म पर नूर के झुरमुट
यह पायल कंगन बिंदिया बाली रे
वह उलझी लटें गुलाबी रुख़सारों पे
बे-क़रारियाँ हों जैसे क़रारों में
उसके जैसी नज़्म कहाँ किताबों में
संदल के जैसा जिस्म है उसका
वह एक है हज़ार नायाबों में
उसके जैसा नशा कहाँ है शराबों
नूर के जिस्म पर नूर के झुरमुट
यह पायल कंगन बिंदिया बाली रे
उसकी ख़ाहिश है मेरे ख़्यालों में
न होगी वैसी किसी के ख़ाबों में
देखकर उसको नींद न आयी रतियाँ जागे
जागे रतियाँ चंदा वाली रे…
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००२