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मेरा गीत

ओ री सखी

ओ री सखी ओ री सखी
सुन री सखी
तेरे बिना कैसी ज़िन्दगी
ओ री सखी ओ री सखी
तेरे बिना कैसी ज़िन्दगी
ये कैसी ज़िन्दगी
हर पल यूँ लगता है कि
तू है मेरी तू है मेरी…

ओ री सखी ओ री सखी
सुन री सखी
तेरे बिना कैसी ज़िन्दगी
ये कैसी ज़िन्दगी…

फूलों से नाज़ुक है तू
कोमल लताओं से कमसिन है तू
मोहब्बत के इरादे हैं तुझसे
मेरे दिल की आख़िरी चाहत है तू

नवाज़ा है हुस्न तुझे उस ख़ुदा ने
प्यार की देवी है तू
अब ख़्याल दिल में तेरा
दिन-रात मुझे तड़पाती है तू

ओ री सखी ओ री सखी
सुन री सखी
तेरे बिना कैसी ज़िन्दगी
ये कैसी ज़िन्दगी…

तुझे मैंने माँगा है रब से
यह धरा बनी है जब से
तेरे लिए मेरी चाहत है तब से,
तू ही एक मंज़िल मेरी…

ओ री सखी ओ री सखी
सुन री सखी
तेरे बिना कैसी ज़िन्दगी
ये कैसी ज़िन्दगी…


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००१-२००२ 

By Vinay Prajapati

Vinay Prajapati 'Nazar' is a Hindi-Urdu poet who belongs to city of tahzeeb Lucknow. By profession he is a fashion technocrat and alumni of India's premier fashion institute 'NIFT'.

One reply on “ओ री सखी”

तुझे मैंने माँगा है रब से
यह धरा बनी है जब से
तेरे लिए मेरी चाहत है तब से,
तू ही एक मंज़िल मेरी…
bahut sundar lagi yah kavita aapki

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