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मेरा गीत

रोज़ सपनों में आता है

रोज़ सपनों में आता है
इन रातों में जगाता है
मैं क्यों न जानूँ उसको
मैं न पहचानूँ उसको

वह मुझसे अजनबी है
लेकिन मेरा हमनशीं है
मैं क्या नाम दूँ उसको
यह दिल दिया जिसको
उसके लिए दीवानी हूँ
उस चाँद की चाँदनी हूँ
जाने कब मिलूँगी उसे
महसूस करती हूँ जिसे

रोज़ सपनों में आता है
इन रातों में जगाता है
मैं क्यों न जानूँ उसको
मैं न पहचानूँ उसको

उसकी ख़ुशबू साँसों में
उसका चेहरा आँखों में
जाने कैसा नशा छाया
जाने कैसा जादू चलाया
वह हसरत बन गया
वह मोहब्बत बन गया
जाने कब मिलूँगी उसे
महसूस करती हूँ जिसे

रोज़ सपनों में आता है
इन रातों में जगाता है
मैं क्यों न जानूँ उसको
मैं न पहचानूँ उसको


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: १९९८-१९९९

By Vinay Prajapati

Vinay Prajapati 'Nazar' is a Hindi-Urdu poet who belongs to city of tahzeeb Lucknow. By profession he is a fashion technocrat and alumni of India's premier fashion institute 'NIFT'.

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