शाम है और मैं हूँ, तुम क्यों नहीं, क्यों नहीं
डर-सा बैठा है दिल में तुम्हें खो न दूँ कहीं
तिलिस्म यह मेरी आँखों का टूट न जाये कहीं
तुमने जहाँ छोड़ा था मुझे मैं आज भी हूँ वहीं
यह फूल हल्के गुलाबी यह आसमाँ आसमानी
सब उदास हैं इक तेरे न होने से और मैं भी
वह यादें मुस्कुराती हुई आज रोती हैं तन्हा
मेरे साथ हैं सीने से लगकर, बिलखती हुई
मुँहज़ोर तन्हाई है सीने में, आँसुओं के भँवर
मैं अकेला कब तलक जूझता रहूँगा यूँ ही
तुमको पाने का इरादा है पर तुम यहाँ नहीं
फिर आँखों से गिरह लगा दो कर लूँ ख़ुद पे यक़ीं
मेरा दिल किसी ग़मो-अफ़सोस का घर नहीं
यह वक़्तो-ख़ुदा का फ़ैसला है, हम जुदा हैं
सच्चे प्यार की साँसें टूटती नहीं, न टूटेंगी
यह फ़ासला मिटायेगा आप ख़ुदा मुझे है यक़ीं
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३