तेरे तीरे-नज़र का घायल हूँ मैं
तेरे हुस्न के पीछे पागल हूँ मैं
शैदाई दीवाना आवारा बादल हूँ मैं
तेरे तीरे-नज़र का घायल हूँ मैं
तेरे ख़ाब पलकों में छिपाये फिरता हूँ
गिर न जायें आँसू बनके डरता हूँ
यह है इब्तदा-ए-सहर-ए-मोहब्बत
इन्तहाने-इम्तिहाँ के लिए मरता हूँ
ऊदी-ऊदी साँसों से सीने में जलन है
सूखा-सूखा मेरे दिल का गुलशन है
हैं दूर तक वदियों में पानी की तहें
फिर किसके लिए प्यासा मेरा मन है
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४
6 replies on “तेरे तीरे-नज़र का घायल हूँ मैं”
बहुत खूब…नववर्ष मंगलमय हो.
बहोत खूब लिखा है आपने…
अर्श
नव वर्ष की शुभकामनाओं के साथ आपका स्वागत
यह है इब्तदा-ए-सहर-ए-मोहब्बत
इन्तहाने-इम्तिहाँ के लिए मरता हूँ
बहुत खूब. अच्छी शब्द-प्रयुक्ति.
ऊदी-ऊदी साँसों से सीने में जलन है
सूखा-सूखा मेरे दिल का गुलशन है
हैं दूर तक वदियों में पानी की तहें
फिर किसके लिए प्यासा मेरा मन है
“कोमल भावनाओ की सुंदर अभिव्यक्ति”
regards
अपने सभी पाठकों का तहे दिल से धन्यवाद करता हूँ कि वह सदैव अपना स्नेह बनाये रखें