साहिबा, साहिबा, साहिबा
तेरी अदाओं पर मैं फ़िदा
साहिबा, साहिबा, साहिबा
तू मेरे प्यार की सुबह
तुझको ढूँढ़ती मेरी निगाह
क़ातिलाना तेरी हर अदा
मार न डाले कहीं दिलरुबा
साहिबा, साहिबा, साहिबा
साहिबा, साहिबा, साहिबा
जवानी के जोश में जवाँ
हो न जाये कोई ख़ता
वाक़िफ़ नहीं तू मेरे इश्क़ से
हमनज़र बचके जायेगी कहाँ
साहिबा, साहिबा, साहिबा
साहिबा, साहिबा, साहिबा
तू जान है मेरे जिस्म की
कैसे रहेगी मुझसे जुदा
देख हाल मेरा बेहाल है
दूर कैसे तू मेरी जाने-वफ़ा
साहिबा, साहिबा, साहिबा
साहिबा, साहिबा, साहिबा
उड़ती-उड़ती तू चली कहाँ
तू पतंग है मेरी मैं हवा
तू किस सोच में डूबी है
सुन तो बात मेरी ज़रा
साहिबा, साहिबा, साहिबा
साहिबा, साहिबा, साहिबा
हसीना तुझको देखकर
हवाओं में कैसा शोर मचा
रुबा से दिलरुबा बनाया
देख तू न होना कभी ख़फ़ा
साहिबा, साहिबा, साहिबा
साहिबा, साहिबा, साहिबा
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: १९९८-१९९९
One reply on “तेरी अदाओं पर मैं फ़िदा”
उड़ती-उड़ती तू चली कहाँ
तू पतंग है मेरी मैं हवा
तू किस सोच में डूबी है
सुन तो बात मेरी ज़रा
bahut sundar nazar ji,sahiba lafz bahut dino baad padha,bahut khub bana hai ye geet.