सर्दियाँ हैं
छत पर लेटी हुई है,
कोहरे से शरमाती, इठलाती धूप
उसके हाथों की गर्मी से
मेरे चेहरे पर मिलता है
तुम्हारा एहसास
हवा की इक हल्की-सी लहर
तुम्हारी साँसों की तरह
मेरी साँसों के क़रीब महसूस होती है
मोहब्बत की बेकसी का
इक चराग़ जल उठता है…
ज़िन्दगी बिन तुम्हारे
इक ख़ालीपन में भटकती है
हर पल तन्हा, हर लम्हा उदास
कुछ टुकड़े ख़ुशी के
जो आँखों में दिखते हैं,
तुम्हारी तस्वीर हैं सब
तुम्हारी तस्वीरें लिखता हूँ
जमा करता हूँ, किताबों के सफ़्हों में…
जो तुम मिलो
तो दिखा सकूँ तुम्हें,
ये चंद तस्वीर जो लिखी हैं मैंने
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४