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मेरी नज़्म

वो मेरे मायने ही बदल देते हैं

लफ़्ज़ मेरे
किसी सादे काग़ज़ की तरह हैं
जिनको कोई पढ़ता नहीं,
लोग बस इन पर
कुछ लिखने की कोशिश करते हैं
वह लिखते रहते हैं
मैं मिटाता रहता हूँ
क्योंकि वो मेरे मायने ही बदल देते हैं

कोई मुझको आज तक
एक ऐसा नहीं मिला,
जिसने पढ़ा हो मेरे लफ़्ज़ों को
बिन किसी फेर बदल के
और कहा हो,
‘इतना दर्द किससे मिला है आपको
क्या आप मुझसे बाँटेंगे ये दर्द?
थोड़ी मोहलत है मेरे पास जीने की’

दर्द पलट के भी दर्द ही रहता है ना…!*

[*‘दर्द’ का विलोमपद(palindrome) दर्द होता है]

शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३

By Vinay Prajapati

Vinay Prajapati 'Nazar' is a Hindi-Urdu poet who belongs to city of tahzeeb Lucknow. By profession he is a fashion technocrat and alumni of India's premier fashion institute 'NIFT'.

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