यह जिस्म नहीं है, काँच के टुकड़े हैं
ज़मीने-वक़्त पर दूर तक बिखरे हैं
इन्हें मत छूना हाथों में चुभ जायेंगे
ये वो दिये हैं, लम्हों में बुझ जायेंगे…
My hopes are broken
My soul is bruised
but you’re loving me, why?
कब तक दीवार बनाते रहोगी तुम
दिलो-दुनिया के बीच, कुछ बोलो तो
कशमकश कोई तुझे मुझसे न होगी
यह निहाँ राज़ तुम, मुझपे खोलो तो
My hopes are broken
My soul is bruised
but you’re loving me, why?
नहीं समझते हो अगर मेरी बात तो
आओ तुम मुझको बाँहों में थाम लो
मेरे ख़ुदा बन जाओ तुम मेरे लिए
अपने लबों से एक बार मेरा नाम लो
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३
4 replies on “यह जिस्म नहीं है”
यह जिस्म नहीं है, काँच के टुकड़े हैं
ज़मीने-वक़्त पर दूर तक बिखरे हैं
इन्हें मत छूना हाथों में चुभ जायेंगे
ये वो दिये हैं, लम्हों में बुझ जायेंगे…
बहुत अच्छे …….बहुत अच्छे …
My hopes are broken
My soul is bruised
but you’re loving me, why?
beautiful & meaningful lines
कब तक दीवार बनाते रहोगी तुम
दिलो-दुनिया के बीच, कुछ बोलो तो
कशमकश कोई तुझे मुझसे न होगी
यह निहाँ राज़ तुम, मुझपे खोलो तो
wah bahut hi sundar
आप सभी का चिट्ठे पर हार्दिक अभिनन्दन और नवरात्रि की शुभकामनाएँ!