यह रात पहाड़ जैसी है कैसे काटे कोई
यह फ़ासले मीलों-से कैसे तय करे कोई
दो पल में बिछड़ जाना ख़ाब जैसा है
इश्क़ आग का दरया है कैसे बुझाये कोई
इस टूटे हुए दिल में वही दर्द पुराने हैं
आँखों में सिमटे हुए गुज़रे ज़माने हैं
तेरी यादों को सीने से लगाके अपना बनाके
यह दूरी दिल से दिल की कैसे मिटाये कोई
यह वीराना तेरे बिना आबाद कैसे होगा
दिल को भी ख़ुशियों का एहसास कैसे होगा
पानी होके लहू आँखों से बहने लगा है
बिगड़ी क़िस्मत अपनी कैसे बनाये कोई
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००२
2 replies on “यह रात पहाड़ जैसी है कैसे काटे कोई”
din kuch aise guzarta hai koi
jaise ahsan utarta hai koi
ghalib aur gulzar ke bahut baRe tarafdaar lagatein hain janaab…