यह रंगीन फ़िज़ा
बेरंग दिख रही है
सावन की बदली
तंग दिख रही है
एक मैं सिर्फ़ मैं
यहाँ बैठा रहता हूँ
बैठकर तेरा नाम
अपने साथ लेता हूँ
सदियाँ गुज़र गयीं
(ऐसा लगता है मुझको,
शायद कुछ ग़लत कह गया मैं,
लेकिन ऐसा ही है!!)
मौसम बदल गये
अरमाँ बदल जायें
अब तो लौट आ
अब तो लौट आ
मुझे तेरा इंतज़ार है
सिर्फ़ तेरा ही…
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २०००-२००१
2 replies on “यह रंगीन फ़िज़ा”
nice one,intazaar bahut lamba bhi na ho,ek sadi hi milti hai jeene ke liye.
sadi_sadiyan