कोई हमसायादार पेड़ नहीं मिला
ज़हर मिले तो ज़हर भी खा लूँ
यह शाम की धूप बहुत कड़ी है…
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३
कोई हमसायादार पेड़ नहीं मिला
ज़हर मिले तो ज़हर भी खा लूँ
यह शाम की धूप बहुत कड़ी है…
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३