ज़िन्दगी के दर्द बहुत ज़िन्दगी के काम आये
जिनसे मतलब नहीं था हमें वो मुक़ाम आये
अपनों का कब हमें नसीब साथ दो क़दम हुआ
तसल्ली के हाथों हमें’ ग़ैरों के सलाम आये
क्या किसने किया यह हिसाब मैं किस-किस को दूँ
हर एक ज़ुबाँ से मुझको सैकड़ों इल्ज़ाम आये
वह कहेंगे अगर तो हम अपनी जान दे देंगे
वह नहीं आते तो क़ासिद के ज़रिए कलाम आये
हम में क्या है यह बात अगर वह जान लेंगे
फिर शायद वह क़ुर्बत की फ़ज़िरो-शाम आये
क़ासिद: डाकिया, Postman | क़ुर्बत: मिलन, Nearness | फ़ज़िर: भोर, Dawn
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४
10 replies on “ज़िन्दगी के दर्द बहुत ज़िन्दगी के काम आये”
बहोत खूब विनय भाई क्या बात है कासिद के जरिये कलाम आए …बहोत खूब अंदाजे बयां …
ज़िन्दगी के दर्द बहुत ज़िन्दगी के काम आये
जिनसे मतलब नहीं था हमें वो मुक़ाम आये
अपनों का कब हमें नसीब साथ दो क़दम हुआ
तसल्ली के हाथों हमें’ ग़ैरों के सलाम आये
sach unkahi kuch makam aate hai,shayad yahi zindagi hai.hum apni anzil ke karib jate hi ar ek lag mod hame saath le jata hai.bahut sundar zindagi ke ehsaas badhai.
बेहतरीन गज़ल . वाह !
अपनों का कब हमें नसीब साथ दो क़दम हुआ
तसल्ली के हाथों हमें’ ग़ैरों के सलाम आये
क्या बात है, बहुत सुंदर शव्द कहे आप ने अपने शेरो मे, सीधे दिल मै उतर गये आप के शेर.
धन्यवाद
ज़िन्दगी के दर्द बहुत ज़िन्दगी के काम आये
जिनसे मतलब नहीं था हमें वो मुक़ाम आये
अपनों का कब हमें नसीब साथ दो क़दम हुआ
तसल्ली के हाथों हमें’ ग़ैरों के सलाम आये
waah…..bahut khub
अपनों का कब हमें नसीब साथ दो क़दम हुआ
तसल्ली के हाथों हमें’ ग़ैरों के सलाम आये
बहुत खूब विनय जी…बेहतरीन ग़ज़ल…बधाई
नीरज
आप सभी पाठकों का हार्दिक अभिनन्दन है
bahut behatarin…….
achchi rachna…
vinay ji har ek sayari, gazal sub bahut kabiley tariff hain. Aap ke jald kitab chhap janey kaamnaa karti hu.
ज़िन्दगी के दर्द बहुत ज़िन्दगी के काम आये
क्या किसने किया यह हिसाब मैं किस-किस को दूँ
हर एक ज़ुबाँ से मुझको सैकड़ों इल्ज़ाम आये
Vinay ji 2008 ke yahi lines ke liye meiny request ki thi, thanks