झूठ नहीं बोलते वक़्त के आइनें
रखते हैं यह इंसाँ की फ़ितरत
किसी का एहसाँ नहीं मानते, किसी के सामने
बहते रहते हैं आबे-दरिया की तरह
बस फ़र्क़ इतना ही है, इंसाँ और इनमें
कि किसी को डबोया नहीं है इनके नाम ने
आइनों के नाम नहीं होते… वक़्त का कैसे होगा?
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २०००