ये बादलों के घट
रिस रहे हैं
भीग रही है हर पत्ती
हर डाली
और
फूल भी भीग रहे हैं
तेरी यादों से
एक उदासी भी
बरस रही है
कुछ ऐसे ही,
कभी तुम
महसूस करके देखना
ख़ुद को तनहा
लगने लगोगी…
मैं आज भी
नज़रें बिछाके
बैठा हूँ तेरी राह में,
आ,
कि मुझे कहीं
अपने साथ ले चल
यह तन्हा सफ़र
और गँवारा नहीं मुझे…
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३