मेरे ज़हन से बुरा
और क्या होगा
शायद मेरे दिल का
कोई कोना होगा
जब से जिगर में
उसका नक्शे-पा है
वही मेरा दैरो-हरम
मक्का-मदीना है
बुराई सब ख़त्म हो गयी है…
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३
मेरे ज़हन से बुरा
और क्या होगा
शायद मेरे दिल का
कोई कोना होगा
जब से जिगर में
उसका नक्शे-पा है
वही मेरा दैरो-हरम
मक्का-मदीना है
बुराई सब ख़त्म हो गयी है…
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३