मुस्कुरा दो’ मुस्कुराने में क्या हर्ज़ है
उतारता हूँ रोज़ जिसे तुम्हारा क़र्ज़ है
लाख बद्-ज़ुबाँ होगी’ दिल खुश्क होगा
एक पुराने लिफ़ाफ़े में तुमसे ये अर्ज़ है
हज़ार बहाने करना’अश्कों में आँख डबोना
हमसे वफ़ाए-जफ़ा तेरे दिल का मर्ज़ है
इक तूफ़ान था जिसके भँवर में डूब गये
ऐसे फ़र्ज़ निभाना मेरे दिल का फ़र्ज़ है
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००२