रह-रह के आता है ख़्याल आपका
जब भी भुलाना चाहूँ नाम आपका
यह जो बद्-ज़ुबान है दिल मेरा
बार-बार दोहराता है सवाल आपका
शाम को सवेरों के उफ़क़ ढूँढ़ता हूँ
जब भी याद आये जमाल आपका
रात जब नींद गिरे आँखों में
पलकों पे दस्तक दे ख़्वाब आपका
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००२