हमने कब कहा कि मोहब्बत नहीं है
तुमसे इक बात है जो मोहब्बत ही है
तुम जब भी गुज़रती हो मेरे सामने से
चेहरा देखना ख़ुदा की इबादत ही है
जिस दिन भी तुमने मुस्कुराया नहीं
वो तुम्हारे दिल की इक शरारत ही है
हमने जो कुछ कहा और किया है
उसमें भी शामिल तुम्हारी इजाज़त ही है
अब रोज़ ही खिंचती है लम्हों में कशिश
कि इनमें भी तुम्हारी नज़ाकत ही है
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००२