तन्हाइयों से ग़म नहीं हम* मिला है
जा^ में दूसरा कोई नहीं सनम मिला है
दूर तक जाके नज़र लौट आती है
ऐसा ये फ़ुर्क़त का मौसम मिला है
अजनबी-से चेहरे आँखों में आते हैं
आँखों को न जाने कैसा मरासिम मिला है
कब वो शामें लौटेंगी कब वो आयेगा
जिससे इश्क़ का हर सितम मिला है
* स्वयं ज्ञान ^जगह, दुनिया
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००२