यह चाँद भी आपजबीं* होता है
जब दीदारे-दिलनशीं होता है
कभी रात में महकते हैं बेले
जो नुमाइशे-महजबीं होता है
तारे भी गुल बनके खिलते हैं
जो साथ में हमनशीं होता है
धीरे-धीरे सहर भी आती है
जब साथ कोई जाँनशीं होता है
*अपने आप दमकना
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००२