मौत के हाथों में मेंहदी लगा दो
मेरी चौखट से यह डोली उठा दो
शहनाई और फेरों की रस्में बहुत देर चलेंगी
सुबह को बुलाकर इस रात को भी विदा दो
यार की निगाहों ने ज़िन्दगी को शक़्ल दी है
आज की रात मौत की शक़्ल पे घूँघट उढ़ा दो
कहार बुलाओ यह डोली उठाओ न देर करो
मेरी आँखों को अश्के-मेहरबाँ से भिगा दो
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००२