चाँद शमए-इश्क़ जलायेगा ज़रूर
तुझे मेरे नज़दीक़ लायेगा ज़रूर
मुझसे दूर शहर में रहने वाले
तू मेरे शहर में आयेगा ज़रूर
तू गर हुस्न है और मैं ख़ाक
ख़ुदा मुझे तुझसे मिलायेगा ज़रूर
आइना-रू गर है तू हुस्ने-जाना
तेरा जल्वा जगमगायेगा ज़रूर
अरुसि गर है तू मेरे जीवन की
सुबह का सूरज आयेगा ज़रूर
नीले लिबास में है सितारों की जगमग
तू जो पहने चाँद शरमायेगा ज़रूर
मुझे यक़ीं है गर देखूँ तुझे आइना-रू
मेरा चेहरा चमक जायेगा ज़रूर
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००२