‘वो मेरी तमन्नाओं को उजाले दिखाये ज़रा
चंद तन्हाई के टुकड़े हैं जलाये ज़रा’
मुझे उम्मीद क्यों है किसी से वफ़ा की
अभी आदत नहीं छूटी उसकी जफ़ा की
बर्गे-बहाराँ हुए जो ख़ज़ाँ के पत्ते
आज उड़ रही है नम ज़ुल्फ़ सबा की
क़त्ल कर के क़ातिल क़यामत करे है
मैंने देखी है रंगत हर एक क़ज़ा की
दूर-दूर पहुँचे मौज़े-जुनूँ के पुरज़े
वो न मिला मुझे मैंने जाने क्या ख़ता की
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००२