नाज़ो-सितम आपके उठायेगा दिल
नज़रे-नज़र बात हो गर यक तिल*
मर्ज़िए-हुस्ने-जाना से रवाँ होऊँ
रुख़सारे-ख़ुश-रू पे गर मचले तिल
बाज़ुए-तस्कीं में आके भी बेतस्कीनियाँ
रू-ब-रू बैठे हुए क़त्ल करे है क़ातिल
लबे-गुलाब की मय मैं ज़रा चख लूँ
जो कभू आये मेरे सीने में आपका दिल
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००२