कहूँ चाँद को तेरा मुक़ाबिल तो कम है
फिर हुई शाम और मेरी आँख नम है
तुम हो मीलों दूर तुम्हें देखूँ कैसे
इस कड़वे सच का मीठा-सा ग़म है
तुम दुल्हन बनकर घर आओगी
मेरा दिल आज बहुत खु़शफ़हम है
मैं रोता हूँ तुमसे जुदाई के ग़म में
तुम न रोना देखो तुम्हें मेरी क़सम है
चाँद की आहट बादलों के पार आती है
यह तेरी आहट की मुझको वहम है
तुम न मिले इस जनम में मुझे गर
यह ज़िन्दगी भी मानिन्दे-सम है
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’