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मेरी ग़ज़ल

न तो काफ़िर ना ही मुस्लमाँ हूँ मैं

न तो काफ़िर ना ही मुस्लमाँ हूँ मैं
नेकी है मज़हब मेरा कि इन्साँ हूँ मैं

आया जो मेरी ज़िन्दगी में चला गया
कहीं खु़द में ही ज़ख़्मे-निहाँ हूँ मैं

दुनिया को बाँट दो सौ मज़हबों में
मगर एक जंज़ीर सबके दर्मियाँ हूँ मैं

लगा जो किसी परी-रू से दिल मेरा
नामालूम फिर कहाँ से कहाँ हूँ मैं

न   रखे   वह कोई   उम्मीद   मुझसे
कोई   आग़ाज़   नहीं    इन्तहाँ   हूँ   मैं

क़द मेरा बहुत छोटा है दुनिया में
मगर   ऊँचा  दिमाग़ो – दहाँ   हूँ   मैं

दोस्त   से   ज़्यादा   मुक़ाबिल हैं   मेरे
यूँ लगता है कि आलि-ए-दौराँ हूँ मैं


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’

By Vinay Prajapati

Vinay Prajapati 'Nazar' is a Hindi-Urdu poet who belongs to city of tahzeeb Lucknow. By profession he is a fashion technocrat and alumni of India's premier fashion institute 'NIFT'.

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