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मेरी ग़ज़ल

तड़पती रूहों से

तड़पती रूहों से उनका ठिकाना नहीं पूछते
हम मैकदा जाएँ वह पैमाना नहीं पूछते

तहज़ीबे-इश्क़ का यह इक उसूल है
दीवाने से दीवानगी का बहाना नहीं पूछते

अब कि रुत बरखा की आयी है बौछार लिए
तिश्ना-लब से दश्तो-वीराना नहीं पूछते

सुखनवरी का एजाज़ सफ़्हों पे हो जब
कलम से फिर माज़ी का अफ़साना नहीं पूछते

आशिक़ी में जिसका ज़ख़्मे-दिल नुमाया हो
उससे कभी वह गुज़रा ज़माना नहीं पूछते

जाने क्या सौदा लिए जाते थे उनकी बज़्म में
वह कि आहो-फ़ुगाँ का तराना नहीं पूछते


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’

By Vinay Prajapati

Vinay Prajapati 'Nazar' is a Hindi-Urdu poet who belongs to city of tahzeeb Lucknow. By profession he is a fashion technocrat and alumni of India's premier fashion institute 'NIFT'.

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