तड़पती रूहों से उनका ठिकाना नहीं पूछते
हम मैकदा जाएँ वह पैमाना नहीं पूछते
तहज़ीबे-इश्क़ का यह इक उसूल है
दीवाने से दीवानगी का बहाना नहीं पूछते
अब कि रुत बरखा की आयी है बौछार लिए
तिश्ना-लब से दश्तो-वीराना नहीं पूछते
सुखनवरी का एजाज़ सफ़्हों पे हो जब
कलम से फिर माज़ी का अफ़साना नहीं पूछते
आशिक़ी में जिसका ज़ख़्मे-दिल नुमाया हो
उससे कभी वह गुज़रा ज़माना नहीं पूछते
जाने क्या सौदा लिए जाते थे उनकी बज़्म में
वह कि आहो-फ़ुगाँ का तराना नहीं पूछते
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’