राज़ दिल के खु़द अपने आप से छुपाते क्यों हो
गर दिल लगाया है कहीं तो बातें बनाते क्यों हो
जायज़ नहीं मुझसे बात करनी तो मत करो
बारहा मेरे क़रीब आकर तुम दूर जाते क्यों हो
नहीं है मोहब्बत तो यह सब वादे क्यों हैं
निगाहों से अयाँ है जो वह बात झुठलाते क्यों हो
मुझे रूठ जाना था तुमसे सदा के लिए पर तुम
यूँ ही मेरे खा़बों में आकर मुझको मनाते क्यों हो
नहीं गर तुम्हें मुझसे इख़लाक़ कैसा भी तो
मुझको बेवज़ह बात-बात पर सताते क्यों हो
दफ़्न है जो कहीं दिल के रेगिस्ताँ में वह प्यास
तुम इक एहसास बनकर जगाते क्यों हो
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’