मैं मुब्तिला हूँ अपनी हसरतों में
बिंधा हूँ तुम्हें पाने की कसरतों में
तुम्हें पाया अपनी मसर्रतों में
तुम्हें तलाशा माज़ी की परतों में
वो हक़ीक़त आज सपना बन गयी
ज़ीस्त उलझी रही फ़ितरतों में
जीत लूँ सारा ज़माना तेरे नाम से
देखो अब हौसला मेरी ज़ुर्रतों में
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’