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मेरी ग़ज़ल

तस्लीमे-वस्ल

वह गया चैन गया ‘नज़र’
दिल तेरा मुरझा गया ‘नज़र’

जाने कब वह आयेगा ‘नज़र’
तब तलक क़रार गया ‘नज़र’

दीदारे-माहज़बीं फिर हो
दमे-आख़िर आ गया ‘नज़र’

लिखे हूँ उसका नाम हाथों में
लब बारहा वहीं गया ‘नज़र’

भिगोऊँ दामन अश्क़े-लहू से
पैमाना यह भर गया ‘नज़र’

हासिल है मुझको सब कुछ
वह नाम लबों पे आ गया ‘नज़र’

लुत्फ़े – आतिशे – इश्क़
क़सम से मज़ा आ गया ‘नज़र’

वस्ल को तस्लीम कर खु़दा
नामे-शीना पे मिट गया ‘नज़र’


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’

By Vinay Prajapati

Vinay Prajapati 'Nazar' is a Hindi-Urdu poet who belongs to city of tahzeeb Lucknow. By profession he is a fashion technocrat and alumni of India's premier fashion institute 'NIFT'.

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