इसमें ख़ता क्या है जो चाह लिया तुमको
क्यों है मुझको सज़ा जो माँग लिया तुमको
चाँद सितारों का वाइदा तुमसे न करूँगा
मैंने अपना सब कुछ वार दिया तुमको
तेरे ही क़दमों पर रोज़ बिछाता हूँ सजदे
मोहब्बत का खु़दा मान लिया तुमको
‘नज़र’ नहीं जानता यह सब कैसे हुआ
बस दिल उसने निसार किया तुमको
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’