दिल में हौसला न होता अगर हम जी न पाते तेरे बिगैर
फ़रियाद किससे करूँ कट रही है आते जाते तेरे बिगैर
जुटा के दर्द से साँसें ज़ीस्त जीता जा रहा हूँ तेरे बिगैर
कितने ताना-ए-रफ़ीक़ो-हरीफ़ सुन रहा हूँ तेरे बिगैर
बिखरी हुई है शाम हर तरफ़ तन्हा तेरे बिगैर
रेत की तरह दर-ब-दर फिरा मैं तन्हा तेरे बिगैर
कोई क्या जाने दर्दो-ग़म ‘नज़र’ का तेरे बिगैर
असर बेअसर हुआ आहे-कमअसर का तेरे बिगैर
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’