मैं तुम्हें महसूस करूँ… हर लम्हा… हर पल
और जो मिलूँ तुमसे तो कहो कि मैं तुम्हें याद नहीं
हश्र मुझको अपने गले से लगा लेगा उस दिन
जब कहोगे कि तेरी मोहब्बत का एतिक़ाद नहीं
मेरे ज़ख़्मों पे रखा मरहम नमक हो जायेगा
गर तुझको क़ुबूल मैं और मेरी फ़रियाद नहीं
उसका इन्तिज़ार करिए और खु़दा का एतिबार भी
यह शबे-हिज्राँ है ‘नज़र’ कोई मियाद नहीं
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’