आँखों में टूटे सपने शीशे की तरह
अनसुनी रही काबे में मेरी कराह
लिखे पयाम और तुमको भेजे नहीं
ज़हन में रही इक डर की गिरह
शहद-सी शाम मिली शफ़क़-शफ़क़
तन्हाई के पहलू में सरे-राह
लहू जम गया पथरा गयीं आँखें
कि जानिब-ए-दर तेरे टिकी निगह
नहीं मुझे कुछ अरमान ज़्यादा का
चाहिए तेरे दिल मेँ थोड़ी-सी जगह
मसाइले-इश्क़ खु़दा न समझे
ये तेरे दर्दो-ग़म यह विरह
अधखुले हैं लबे-गुल चमन में
न देखी उनने अरुसि न ही सुबह
‘नज़र’ उनको देख नुक़्तासरा है
और वो भूल गये वादे-निबाह
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’