इश्क़ वही दर्द है कहा जिसको
मर्ज़ वही दिल में रखा जिसको
मैं वही मुब्तिला- ए- मर्ज़े- इश्क़ हूँ
सिर्फ़ इश्क़ ही है दवा जिसको
बेग़ानों में आज पाया उसे हमदर्द
कल तलक कहते थे खु़दा जिसको
दिल के बहुत क़रीब रहा था वो कभी
दर्द हमने किये अदा जिसको
पार शोलों पे चलके वही जाएगा
आग से खेलने में आता है मज़ा जिसको
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’