मैंने उसे जो ख़त भेजे नहीं वो जला दिये जाएँ
बाक़ी यह खा़ब मिट्टी में मिला दिये जाएँ
हम- से आशिक़ जो फ़ना हुए राहे- इश्क़ में
उन सब आशिक़ों के नाम भुला दिये जाएँ
गर न पड़े उसको सुकूँ मेरे दर्दों से
नमक से मेरे ज़ख़्म सहला दिये जाएँ
उसे अब भी मेरा दिल रखना आता है शायद
उसको दिल तोड़ने के हुनर सिखा दिये जाएँ
मैंने उसे देखा है झूठो-फ़रेब के दामन में
मेरी आँखों पर परदे गिरा दिये जाएँ
वह वाक़िफ़ नहीं मोहब्बत के नाम से भी
ऐ ‘नज़र’ उसको मेरे क़लाम सुना दिये जाएँ
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’