बड़ी मुद्दत के बाद उसका सलाम आया है
बीती बातों के दर्मियाँ मेरा नाम आया है
मेरे दिल में कोई कशिश है या कश्मकश है
क्यों लगता है उसकी निगाह का पयाम आया है
बड़े बेचैन दिन बड़ी बेताब रातें जाती हैं
मेरी मोहब्बत में इक नया मक़ाम आया है
अब तो दो मुझको मेरी मुहब्बत का सिला
देखो तुम कि तेरे दर पर तेरा ग़ुलाम आया है
मुझको देखो मैं कितना खु़श हूँ तन्हाई में
कि इश्क़ नाकाम हुआ फिर भी काम आया है
हँस-हँस के बदला लो ‘नज़र’ अपने दिल से
फिर नज़र तुम्हें वो गुले-अंदाम आया है
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’