मुरव्वत आप जैसे बेमुरव्वत हम हैं
क़िस्मत आप जैसों की बद्-क़िस्मत हम हैं
हुस्न को देखते हैं हम दूर खड़े रहकर
आप जैसे नाज़ वालों की मोहब्बत हम हैं
आपके हमज़ुबाँ और भी बहुत हैं जहाँ में
आप हक़ की इनायत तोहमत हम हैं
तुम जो कह दोगे मुंसिफ़ उसे ही मानेगा
फ़िल-हक़ीक़त बात आपकी बेताक़त हम हैं
आप जब मोहब्बत करेंगे किसी से वो सही होगी
आपसे मोहब्बत करके ग़लत हम हैं
बेदर्द का दर्द ‘नज़र’ तुम्हें खू़ब रहा
काश कभी वो भी कहता तेरी क़िस्मत हम हैं
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’