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मेरी ग़ज़ल

तवील सफ़र

मुख़्तसर लम्हों का तवील सफ़र
अन्जान मुसाफ़िर अन्जान डगर

तनहाई खा़मोशी अँधेरे और उजाले
बैठे रहे रहगुज़र में रातभर

चमन में बहती है चंचल पवन
आती है तेरी खु़श्बू दूर से उड़कर

चलते-चलते हम कभी थके नहीं
मगर जाने क्या ढूँढ़ते हैं शामो-सहर

मन बेचैन है मेरा एक मुद्दत से
उठ-उठके साहिल को चूमती है लहर

जो हम कभी कह न पाये लफ़्ज़ों में
तुम देखते हमारी आँखों में पढ़कर

इसके सिवा मुझे और कोई ग़म नहीं
तुमने देखा नहीं मुझे पीछे मुड़कर

कहना क्या था और कह क्या रहे हो
है इसकी ख़बर तुम्हें कुछ ‘नज़र’


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’

By Vinay Prajapati

Vinay Prajapati 'Nazar' is a Hindi-Urdu poet who belongs to city of tahzeeb Lucknow. By profession he is a fashion technocrat and alumni of India's premier fashion institute 'NIFT'.

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