आज एक शख़्स से फ़ुर्क़त तुमसे और क़ुर्बत हुई
तुमसे फ़ुर्क़त भी आज एक बार फिर क़ुर्बत हुई
फिर बरसने लगीं बादलों से तेरी यादों की बौछारें आज
एक बार फिर मुझे अपनी शक़्ल की हसरत हुई
कितने बरस बीते कितने दिन गये और कितनी रातें
आज ये हिसाब लगाके फिर मुझे तेरी हसरत हुई
तुम्हारे बिना आज तक मुझसे कुछ भी नहीं जीता गया
आज फिर मुझे यह जहाँ जीतने को तेरी ज़रूरत हुई
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’