यादों के गिरदाब हैं और तस्व्वुर के तूफ़ाँ
ज़िन्दगी गले लगा ले या तू लगा ले ऐ मौताँ
इम्तिहाने-इश्क़ में जलते हैं सो आग से
दिल में सब हैं दर्दो-ग़म आहो-फ़ुगाँ
गुलरुत है बाग़-बाग़ और कली-कली भँवरा
मन मेरा फिर भी देखता है शाख़-शाख़ खिज़ाँ
किस्से नये पुराने बुनते रहे लक़ीरों के बीच
दिल ने मेरे खींच ली अपनी अलग दास्ताँ
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’