मानिन्दे-गुल तुम आये थे मेरे चमन में
तुम गये फिर न लौटे क्यों आये थे मेरे चमन में
नाआश्ना बिन तुम्हारे साँसें ऊबने लग गयी हैं
ज़ीस्त बहारे-वज़ा थी तुम लाये थे मेरे चमन में
ख़ाहिशो-ख़्यालो-तस्व्वुर सब तुम्हीं से है
दीप मोहब्बत के तुमने जलाये थे मेरे चमन में
वह अदा वह नाज़ वह बाँकपन जिसने दिल जीत लिया था
कहाँ है वह जिसने चार चाँद लगाये थे मेरे चमन में
यह दूरियाँ यह फ़ासले यह फ़ुर्क़त अब तो मिटे
आज सुब्हो-शाम दोनों नज़र आये थे मेरे चमन में
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’